🌿 अहंकार का जन्म और उससे बचने की सावधानी

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 (A Spiritual Psychology Insight Based on Ancient Wisdom)

“अहंकार आत्मा और परमात्मा के बीच खड़ी दीवार है।”श्रीमद्भगवद्गीता (16.4)


 

🕉️ परिचय

अहंकार केवल एक मानसिक अवस्था नहीं, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा में सबसे बड़ा अवरोध है।
भगवद्गीता (अध्याय 3, श्लोक 27) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं —

“प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः; अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते।”
अर्थात, मनुष्य प्रकृति के गुणों द्वारा संचालित कर्मों को अपना मानकर ‘मैं करता हूँ’ का भ्रम पाल लेता है।
यही भ्रम अहंकार का जन्म है।


🌱 अहंकार का जन्म कैसे होता है

आध्यात्मिक ग्रंथों के अनुसार अहंकार का मूल कारण है अविद्या (अज्ञान) — यानी अपनी वास्तविक सत्ता को न जान पाना।
जब व्यक्ति को ज्ञान, सफलता या मान-सम्मान मिलता है, तो मन “मैं” की भावना से भर उठता है।
वहीं से “मैं श्रेष्ठ हूँ” की धारा शुरू होती है।

आधुनिक मनोविज्ञान भी इसे स्वीकार करता है। Carl Jung ने अपने शोध में कहा था कि —

“Ego is a necessary illusion that helps man function, but once it dominates, it destroys the balance of the self.”
(“अहंकार मनुष्य को कार्य करने में मदद करता है, पर जब वही नियंत्रण ले ले, तो आंतरिक संतुलन नष्ट हो जाता है।”)


⚡ अहंकार के लक्षण

  1. दूसरों को नीचा दिखाने की आदत

  2. अपनी गलती स्वीकार न कर पाना

  3. श्रेय स्वयं लेना

  4. क्रोध व ईर्ष्या का बढ़ना

  5. नम्रता और करुणा का अभाव

ये लक्षण दर्शाते हैं कि भीतर “मैं” का बीज जम चुका है।


🌼 अहंकार से बचने की सावधानी

“जहाँ नम्रता है, वहाँ ईश्वर है; जहाँ अहंकार है, वहाँ पतन निश्चित है।”स्वामी विवेकानंद

  1. ईश्वर को कर्ता मानें
    गीता (18.14) कहती है, “ईश्वर भी कर्मों में पाँचवाँ कारण है।”
    स्वयं को माध्यम मानना अहंकार को गलाता है।

  2. सेवा और करुणा अपनाएँ
    विनम्रता का सर्वोच्च अभ्यास है निःस्वार्थ सेवा। यह “मैं” को “हम” में बदल देती है।

  3. आत्मचिंतन करें
    दिन के अंत में विचार करें कि क्या दिनभर में मैंने कहीं ‘मैं’ को अधिक महत्व दिया?

  4. सत्संग में रहें
    सज्जनों की संगति अहंकार को धीरे-धीरे पिघला देती है।

  5. प्रकृति का ध्यान करें
    विशाल आकाश, सागर या ब्रह्मांड को देखकर व्यक्ति समझता है कि वह कितना छोटा है।


🌺 निष्कर्ष

“ज्ञान से पहले अज्ञान होता है, पर ज्ञान के बाद भी जो ‘मैं’ बचा रहे — वही अहंकार है।”

जब मनुष्य यह जान लेता है कि वह स्वयं नहीं, बल्कि ईश्वर की चेतना का उपकरण है, तब अहंकार मिटकर विनम्रता और शांति में बदल जाता है।
यही सच्ची आध्यात्मिक परिपक्वता है।


✍️ लेखक परिचय (Author Bio)

हरि प्रेरणया रवि शंकर एक अध्यात्म-प्रेमी लेखक हैं, जो वेदांत, गीता और मानव मनोविज्ञान पर आधारित लेखन करते हैं।
उनके लेखों का उद्देश्य आधुनिक जीवन में प्राचीन भारतीय ज्ञान को सरल रूप में प्रस्तुत करना है।

📚 संदर्भ (Citations)

  1. Srimad Bhagavad Gita, Chapters 3 & 18

  2. Swami Vivekananda’s Complete Works, Vol. IV

  3. Carl Jung, The Archetypes and the Collective Unconscious (1959)

  4. Bhagavata Purana, Skanda 11 – Uddhava Gita (Teachings on Ego)

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