बाँसुरी का इतिहास:
बाँसुरी (फ्लूट) एक प्राचीन और पवित्र वाद्ययंत्र है, जिसका इतिहास हज़ारों साल पुराना है। यह भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और भगवान श्रीकृष्ण के साथ इसका गहरा संबंध है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण की बाँसुरी की धुन से गोपियाँ मंत्रमुग्ध हो जाती थीं। भारतीय साहित्य, कला, और मूर्तियों में बाँसुरी का उल्लेख प्रमुखता से मिलता है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक, बाँसुरी को न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में प्रेम और शांति का प्रतीक माना गया है।
बाँसुरी पर गाये जाने वाले कुछ राग:
राग यमन: यह एक शास्त्रीय राग है जो शाम के समय बजाया जाता है। इसका स्वभाव शांत और मधुर होता है। यह राग काफी लोकप्रिय है और अक्सर बाँसुरी पर बजाया जाता है।
राग भूपाली: यह एक सरल और मधुर राग है जो रात के पहले पहर में बजाया जाता है। इसमें पंचम स्वर का विशेष महत्व है और इसका संगीत बहुत ही सुकूनदायक होता है।
राग हंसध्वनि: यह राग कर्नाटिक संगीत से लिया गया है और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में भी बहुत लोकप्रिय है। इस राग का स्वभाव उल्लासपूर्ण और आनंददायक है।
राग भैरव: सुबह के समय बजाया जाने वाला यह राग गंभीर और गहरा होता है। यह राग ध्यान और भक्ति के लिए आदर्श माना जाता है।
बाँसुरी पर गाये जाने वाले भक्ति गीत:
रघुपति राघव राजा राम: यह एक प्रसिद्ध भजन है जो भगवान राम को समर्पित है। इसे बाँसुरी पर बजाना बहुत ही सुंदर लगता है।
वैष्णव जन तो: यह भजन महात्मा गांधी का प्रिय भजन था और इसे बाँसुरी पर बजाने से शांति और भक्ति का अद्भुत अनुभव मिलता है।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर: मीरा बाई का यह भजन बाँसुरी पर बहुत ही भावपूर्ण तरीके से गाया जाता है, जो भक्तिभाव को जाग्रत करता है।
अच्युतम केशवम कृष्ण दामोदरम: यह भजन भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न नामों को दर्शाता है और इसे बाँसुरी पर बजाना अत्यंत मधुर और भक्ति से भरा होता है।
बाँसुरी की मधुर ध्वनि भक्ति गीतों और शास्त्रीय रागों के माध्यम से एक अलग ही आध्यात्मिक वातावरण बनाती है।
कुछ प्रमुख बाँसुरी
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