मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु बाहर नहीं, उसके भीतर होता है।
इसीलिए श्रीकृष्ण ने कहा —
“काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।”
(भगवद्गीता 3.37)
अर्थात् — यह काम और क्रोध रजोगुण से उत्पन्न होते हैं और यही मनुष्य के पतन का कारण बनते हैं।
🔥 काम क्या है?
“काम” केवल शारीरिक इच्छा नहीं है — यह किसी भी प्रकार की तीव्र लालसा या आसक्ति है।
जब मन किसी वस्तु, व्यक्ति, पद, या सुख की प्रबल इच्छा में बंध जाता है, तो वह काम कहलाता है।
यही इच्छा, पूरी न होने पर, क्रोध में बदल जाती है।
“कामात् क्रोधोऽभिजायते।” (गीता 2.62)
🌿 कामना पर विजय क्यों आवश्यक है?
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कामना मनुष्य को भटकाती है, उसे वर्तमान से दूर करती है।
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यह अशांति, असंतोष और अधीरता का कारण बनती है।
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और जब तक इच्छाएँ हैं, मन कभी शांति नहीं पा सकता।
“जहाँ काम का अंत होता है, वहीं से भक्ति और शांति की शुरुआत होती है।”
🪷 काम को जीतने के उपाय
1. विवेक और आत्मचिंतन
हर इच्छा को तुरंत पूरा करने की बजाय यह पूछें —
“क्या यह इच्छा मेरे आत्मविकास में सहायक है या बाधक?”
विवेक ही कामना का प्रथम उपचार है।
2. इंद्रिय संयम
काम की जड़ इंद्रियों की भटकन है।
अत: भोजन, दृष्टि, वाणी और व्यवहार में संयम रखें।
“संयम ही साधक की सबसे बड़ी ढाल है।”
3. संग का प्रभाव
जिसके संग में रहेंगे, वैसी ही प्रवृत्ति विकसित होगी।
इसलिए सत्संग करें — जहां भगवान, भक्ति, और ज्ञान की चर्चा हो।
4. ध्यान और नामस्मरण
कामना की जड़ मन में है, और मन को शुद्ध करने का उपाय है ध्यान।
हर दिन कुछ समय भगवान के नाम का जप करें।
नाम-स्मरण से मन की तरंगें शांत होती हैं।
5. सेवा और प्रेम
कामना “लेने” की प्रवृत्ति है, जबकि प्रेम और सेवा “देने” की प्रवृत्ति” है।
जब हम दूसरों की सेवा में मन लगाते हैं, तो अपनी इच्छाएँ अपने आप गल जाती हैं।
🌸 समापन विचार
कामना को दबाने से नहीं, रूपांतरित करने से जीतना चाहिए।
इच्छा को भक्ति में, वासना को प्रेम में, और आकर्षण को सेवा में बदल दो।
यही सच्ची साधना है।
“काम को जीतने वाला ही योगी है, और वही सच्चा आनंद जानता है।”