💚 ईर्ष्या पर विजय कैसे प्राप्त करें — मैत्री और कृतज्ञता का मार्ग

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 शास्त्रों में कहा गया है —

“जयेत् ईर्ष्यां प्रसन्नेन।”
अर्थात् — ईर्ष्या पर विजय प्रसन्नता और मैत्रीभाव से ही संभव है।


🌿 ईर्ष्या क्या है?

ईर्ष्या तब जन्म लेती है जब हम किसी और की सफलता, सुख या गुण देखकर भीतर से जलते हैं।
यह भाव हमें दूसरों से नहीं, स्वयं से दूर कर देता है।

“ईर्ष्या वह विष है जिसे हम खुद पीते हैं,
और उम्मीद करते हैं कि दूसरा व्यक्ति बीमार हो जाए।”


🔥 ईर्ष्या के परिणाम

  1. मन की अशांति:
    ईर्ष्या कभी भी चैन नहीं देती। यह भीतर ही भीतर जलाती रहती है।

  2. सकारात्मकता का क्षय:
    ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों के गुण देखने की शक्ति खो देता है।

  3. संबंधों में विष:
    जहाँ ईर्ष्या है, वहाँ प्रेम, विश्वास और सहयोग टिक नहीं सकते।


🌸 ईर्ष्या को जीतने के उपाय

1. कृतज्ञता का अभ्यास करें

हर दिन सोचें — “मेरे जीवन में क्या-क्या अच्छा है?”
कृतज्ञ व्यक्ति ईर्ष्या नहीं करता, क्योंकि वह जानता है कि जो मिला है, वही उसके लिए श्रेष्ठ है।

2. तुलना बंद करें

ईर्ष्या की जड़ तुलना है।
हर आत्मा की यात्रा अलग है।
जैसे हर फूल का खिलने का समय अलग होता है, वैसे ही हर व्यक्ति का जीवन मार्ग भी अलग होता है।

3. मैत्रीभाव विकसित करें

जब हम दूसरों की सफलता में प्रसन्न होना सीखते हैं,
तब भीतर की ईर्ष्या मैत्री और प्रेरणा में बदल जाती है।

“दूसरे के सुख को देखकर प्रसन्न होना ही सच्चा वैराग्य है।”

4. आत्मविकास पर ध्यान दें

दूसरों से बेहतर बनने की बजाय,
हर दिन अपने कल के स्वरूप से बेहतर बनने की प्रतिज्ञा करें।
ईर्ष्या वहीं मिटती है जहाँ आत्मसुधार आरंभ होता है।

5. सत्संग और चिंतन

सत्संग मन में विनम्रता और कृतज्ञता लाता है।
जब मन ईश्वर से जुड़ता है, तब उसे दूसरों से जलने का कारण ही नहीं दिखता।


🌼 समापन विचार

हाँ — ईर्ष्या पर विजय प्रसन्नता और मैत्रीभाव से ही संभव है।
जब मन दूसरों को प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि सहयात्री मानने लगता है,
तब ईर्ष्या समाप्त होकर करुणा और प्रेम में बदल जाती है।

“जयेत् ईर्ष्यां प्रसन्नेन” —
दूसरों की खुशी में प्रसन्न होना ही सच्ची विजय है।

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