शास्त्रों में कहा गया है —
“जयेत् द्वेषं क्षमया।”
अर्थात् — द्वेष पर विजय केवल क्षमा और करुणा से ही संभव है।
🌿 द्वेष क्या है?
द्वेष का अर्थ है — किसी के प्रति मन में वैरभाव या घृणा रखना।
यह तब उत्पन्न होता है जब हमें किसी ने दुख पहुँचाया हो, या जब हमारी अपेक्षाएँ टूट जाती हैं।
जहाँ ईर्ष्या दूसरों की सफलता से जलाती है,
वहाँ द्वेष दूसरों की उपस्थिति से ही बेचैनी पैदा करता है।
“द्वेष में जीने वाला व्यक्ति
अपने ही हृदय में कांटे बोता है।”
🔥 द्वेष के परिणाम
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मन की कड़वाहट:
द्वेष मन को कठोर बना देता है; करुणा और प्रेम का प्रवाह रुक जाता है। -
अतीत का बोझ:
जो व्यक्ति द्वेष पालता है, वह अतीत की चोटों को ढोता रहता है —
और वर्तमान में जी नहीं पाता। -
शांति का अभाव:
द्वेष शांत मन का सबसे बड़ा शत्रु है।
यह हमें भीतर से थका देता है, और जीवन का आनंद छीन लेता है।
🌸 द्वेष को जीतने के उपाय
1. क्षमा का अभ्यास करें
क्षमा करना भूल जाना नहीं है,
बल्कि यह स्वीकार करना है कि “मुझे अब उस पीड़ा के पार बढ़ना है।”
क्षमा स्वयं के लिए की जाती है, ताकि हृदय हल्का हो सके।
“क्षमा दुर्बलों का नहीं, शक्तिशालियों का गुण है।”
2. करुणा का भाव जगाएं
जिसने आपको कष्ट दिया, वह भी अज्ञान का शिकार है।
जब आप यह समझते हैं, तो उसके प्रति द्वेष की जगह करुणा आ जाती है।
3. अतीत को छोड़ना सीखें
जो बीत गया, उसे बार-बार सोचकर पुनः जीना, द्वेष को बढ़ाता है।
ध्यान, जप, और सत्संग से मन को वर्तमान में टिकाएँ।
4. सद्भावना प्रार्थना करें
हर दिन यह प्रार्थना करें —
“हे प्रभो, जिस किसी के प्रति मेरे मन में द्वेष है,
उस सबके प्रति शुभभाव उत्पन्न करें।”
यह साधना धीरे-धीरे हृदय को पवित्र करती है।
5. भक्ति और आत्मचिंतन
जब मन भगवान की भक्ति में रमा होता है,
तो द्वेष का स्थान प्रेम और समर्पण ले लेता है।
🌼 समापन विचार
हाँ — द्वेष पर विजय क्षमा से ही संभव है।
क्रोध आग है, ईर्ष्या धुआँ है, और द्वेष — उस आग की राख।
इसे बुझाने का उपाय केवल प्रेम, करुणा और क्षमा है।
“जयेत् द्वेषं क्षमया —
क्षमा वह जल है जो द्वेष की आग को शांत कर देता है।”