शिवसंकल्पसूक्त ६ मंत्र, लिरिक्स इन हिंदी इंग्लिश script - Shivsankalpsukt

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शिवसंकल्पसूक्त - Shivsankalpsukt


मनः एव मनुष्याणां कारणं मोक्ष बन्धनयोः। अर्थात किसी वयक्ति के मन में शुभ विचार उसको को मोक्ष दिलातें हैं वही अशुभ विचार वंधन में डाल देते हैं। इन छः मंत्रों के माध्यम से मन में कल्याणकारी सोच उपजने के लिए प्रार्थना की गयी है 

Manah ev manuṣyaaṇaan kaaraṇan mokṣ bandhanayoah. Arthaat kisee vayakti ke man men shubh vichaar usako ko mokṣ dilaaten hain vahee ashubh vichaar vndhan men ḍaal dete hain. In chhah mntron ke maadhyam se man men kalyaaṇaakaaree soch upajane ke lie praarthanaa kee gayee hai 



यजाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति।

दूरङ्गमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु॥१॥

Yajaagrato dooramudaiti daivn tadu suptasy tathaivaiti. 

Doora~ngamn jyotiṣaan jyotirekn tanme manah shivasa~nkalpamastu॥1॥


येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः।

यदपूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥२॥

Yajaagrato dooramudaiti daivn tadu suptasy tathaivaiti. 

Doora~ngamn jyotiṣaan jyotirekn tanme manah shivasa~nkalpamastu॥1॥


यत्प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु।

यस्मान्न ऋते किं चन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥३॥

Yatpragyaanamut cheto dhritishch yajyotirantaramritn prajaasu. 

Yasmaann rrite kin chan karm kriyate tanme manah shivasa~nkalpamastu ॥3॥


येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत् परिगृहीतममृतेन सर्वम्।

येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥४॥

Yenedn bhootn bhuvann bhaviṣyat parigriheetamamriten sarvam. 

Yen yagyastaayate saptahotaa tanme manah shivasa~nkalpamastu ॥4॥


यस्मिन्नृचः साम यजूᳬषि यस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभाविवाराः।

यस्मिंश्चित्तᳬसर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥ ५॥

Yasminnrichah saam yajooᳬṣi yasmin pratiṣṭhitaa rathanaabhaavivaaraah. 

Yasminshchittᳬsarvamotn prajaanaan tanme manah shivasa~nkalpamastu ॥ 5॥


सुषारथिरश्वानिव यन्यनुष्यान्नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव।

हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥ ६ ॥

Suṣaarathirashvaaniv yanyanuṣyaanneneeyate. Abheeshubhirvaajin iv. 

Hritpratiṣṭhn yadajirn javiṣṭhn tanme manah shivasa~nkalpamastu ॥ 6 ॥


उपरोक्त शिवसंकल्पसूक्त का अर्थ 

जो जागते हुए व्यक्ति का मन दूर चला जाता है और सोते समय निकट आ जाता है, जो परमात्मा के साक्षात्कार का प्रमुख साधन है; जो भूत, भविष्य, वर्तमान, समीप और दूर की वस्तुओं का एकमात्र ज्ञाता है, और जो इन्द्रियों के माध्यम से विषयों का ज्ञान प्राप्त करने का एकमात्र प्रकाशक और संचालक है, मेरा वह मन भगवत्सम्बन्धी शुभ संकल्प से युक्त हो॥१॥

धीर और कर्मनिष्ठ विद्वान् जिसके माध्यम से यज्ञ में उपयोगी पदार्थों का ज्ञान प्राप्त कर यज्ञीय कर्मों का विस्तार करते हैं, जो इन्द्रियों का मूल अथवा आत्मस्वरूप है, जो पूज्य है और समस्त प्रजा के हृदय में निवास करता है, मेरा वह मन भगवत्सम्बन्धी शुभ संकल्प से युक्त हो॥२॥

जो विशेष प्रकार के ज्ञान का कारण है, जो सामान्य ज्ञान का स्रोत है, जो धैर्य का प्रतीक है, जो समस्त प्रजा के हृदय में रहकर उनकी इन्द्रियों को प्रकाशित करता है, जो स्थूल शरीर की मृत्यु के बाद भी अमर रहता है और जिसके बिना कोई भी कर्म नहीं किया जा सकता, मेरा वह मन भगवत्सम्बन्धी शुभ संकल्प से युक्त हो॥३॥

जिस अमृतस्वरूप मन के द्वारा भूत, वर्तमान और भविष्य से संबंधित सभी वस्तुएं ग्रहण की जाती हैं, और जिसके द्वारा सात होताओं वाला अग्निष्टोम यज्ञ सम्पन्न होता है, मेरा वह मन भगवत्सम्बन्धी शुभ संकल्प से युक्त हो॥४॥

जिस मन में रथ के चक्र की नाभि में अरों की तरह ऋग्वेद और सामवेद स्थापित हैं, जिसमें यजुर्वेद प्रतिष्ठित है, और जिसमें प्रजा का सम्पूर्ण ज्ञान समाहित है, मेरा वह मन भगवत्सम्बन्धी शुभ संकल्प से युक्त हो॥५॥

जैसे श्रेष्ठ सारथि घोड़ों का संचालन और रास से उन्हें नियंत्रित करता है, वैसे ही जो प्राणियों का संचालन और नियन्त्रण करता है, जो हृदय में निवास करता है, जो कभी वृद्ध नहीं होता और जो अत्यन्त वेगवान है, मेरा वह मन भगवत्सम्बन्धी शुभ संकल्प से युक्त हो॥६॥

Shivsankalpsukt Meaning


Jo jaagate hue vyakti kaa man door chalaa jaataa hai aur sote samay nikaṭ aa jaataa hai, jo paramaatmaa ke saakṣaatkaar kaa pramukh saadhan hai; jo bhoot, bhaviṣy, vartamaan, sameep aur door kee vastuon kaa ekamaatr gyaataa hai, aur jo indriyon ke maadhyam se viṣayon kaa gyaan praapt karane kaa ekamaatr prakaashak aur snchaalak hai, meraa vah man bhagavatsambandhee shubh snkalp se yukt ho॥1॥

dheer aur karmaniṣṭh vidvaan jisake maadhyam se yagy men upayogee padaarthon kaa gyaan praapt kar yagyeey karmon kaa vistaar karate hain, jo indriyon kaa mool athavaa aatmasvaroop hai, jo poojy hai aur samast prajaa ke hriday men nivaas karataa hai, meraa vah man bhagavatsambandhee shubh snkalp se yukt ho॥2॥

jo visheṣ prakaar ke gyaan kaa kaaraṇa hai, jo saamaany gyaan kaa srot hai, jo dhairy kaa prateek hai, jo samast prajaa ke hriday men rahakar unakee indriyon ko prakaashit karataa hai, jo sthool shareer kee mrityu ke baad bhee amar rahataa hai aur jisake binaa koii bhee karm naheen kiyaa jaa sakataa, meraa vah man bhagavatsambandhee shubh snkalp se yukt ho॥3॥

jis amritasvaroop man ke dvaaraa bhoot, vartamaan aur bhaviṣy se snbndhit sabhee vastuen grahaṇa kee jaatee hain, aur jisake dvaaraa saat hotaa_on vaalaa agniṣṭom yagy sampann hotaa hai, meraa vah man bhagavatsambandhee shubh snkalp se yukt ho॥4॥

jis man men rath ke chakr kee naabhi men aron kee tarah rrigved aur saamaved sthaapit hain, jisamen yajurved pratiṣṭhit hai, aur jisamen prajaa kaa sampoorṇa gyaan samaahit hai, meraa vah man bhagavatsambandhee shubh snkalp se yukt ho॥5॥

jaise shreṣṭh saarathi ghodon kaa snchaalan aur raas se unhen niyntrit karataa hai, vaise hee jo praaṇaiyon kaa snchaalan aur niyantraṇa karataa hai, jo hriday men nivaas karataa hai, jo kabhee vriddh naheen hotaa aur jo atyant vegavaan hai, meraa vah man bhagavatsambandhee shubh snkalp se yukt ho॥6॥

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