।। अथ श्री-सूक्त मंत्र पाठ ।।
श्री सूक्त से लक्ष्मी जी की षोडशोपचार पूजा की जाती है। लक्ष्मी पूजन तो सभी कर सकते हैं लेकिन व्यवसायी समाज को लक्ष्मी पूजन में विशेष रूचि होती है। जो लोग विधिवत लक्ष्मी पूजन नहीं कर सकते वो लोग भी ब्राह्मण बुलाकर अपने यहाँ लक्ष्मी सूक्त का पाठ करवाते हैं।
शुक्रवार लक्ष्मी जी पाठ - शुक्रवार का दिन धन की देवी लक्ष्मी को समर्पित है ।कहा जाता है कि राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य और मां काली दोनों के लिए यह दिन समर्पित हैं ।कहा जाता है कि देवी लक्ष्मी के घर में रहने से कभी भी दरिद्रता नहीं आती है ।देवी लक्ष्मी के सम्मान में कई अन्य अनुष्ठान, पूजा के कार्य और टोटके से की जाती है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि शुक्रवार के दिन उनके श्री सूक्त का पाठ करने से दुर्भाग्य दूर होता है ।हमें इस पाठ के लाभ और शिक्षण रणनीति के बारे में बताएं ।
श्री सूक्त पाठ के लाभ
- धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी की कृपा शीघ्र प्राप्त करने के लिए श्री सूक्त का पाठ करना अत्यंत प्रभावकारी होता है । इसे शुक्रवार के अलावा हर दिन किया जा सकता है ।इसे वित्तीय संकट को दूर करने में विशेष रूप से सफल माना जाता है ।
- श्री सूक्त कहने से स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त होता है ।
- श्री सूक्त का पाठ करने से दुर्भाग्य भाग्य में बदल जाता है। गृहस्थी समृद्ध होती है ।परिवार कभी गरीबी का अनुभव नहीं करता।कॉर्पोरेट विस्तार के अवसर उपलब्ध होतें हैं ।
- हर महीने की अमावस्या और पूर्णिमा को इस उपाय को करने से आपको मनचाहा प्रभाव मिलता है ।
श्री सूक्त पाठ विधि
- ऋग्वेद के अनुसार श्री लक्ष्मी सूक्त का विधि विधान से उच्चारण करने से समस्त लाभ प्राप्त होता है । _ _शुक्रवार के दिन इस पाठ को केवल सुबह या शाम स्नान करके ही पूरा करें ।इस संबंध में पवित्रता महत्वपूर्ण है ।
- इस पाठ को घर पर या लक्ष्मी जी के मंदिर में स्नान करने के बाद सफेद कपड़े पहनकर करने की सलाह दी जाती है ।
- देवी की पूजा करने के बाद लक्ष्मी जी के सामने घी का दीपक रखें ।इसके बाद श्री सूक्त का पाठ शुरू होगा।
- इस पाठ को जल्दी से पूरा नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यदि इसका उच्चारण गलत है, तो पाठ प्रभावी नहीं होगा ।यदि आप संस्कृत में पाठ करने में असमर्थ हैं, तो इसके बजाय हिंदी संस्करण पढ़ें ।
- यह पाठ उस समय भी कही जाती है जब विशेष मनोकामना पूर्ति के लिए यज्ञ किया जा रहा हो ।जिसमें कमलगट्टे को गाय के घी में मिलाकर हवन के दौरान श्री सूक्त स्तोत्र के प्रत्येक मंत्र का पाठ करते हुए बलि के साथ चढ़ाया जाता है ।
1- ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।।
2- तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम् ।।
3- अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।
श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।
4- कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।
5- चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।।
6- आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।।
7- उपैतु मां दैवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।।
8- क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात् ।।
9- गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।
10- मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।
11- कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।
12- आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।
13- आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।।
14- आर्द्रां य करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ।।
15- तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ।।
16- य: शुचि: प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत् ।।
।। इति समाप्ति ।।